नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-11

स्वर्ग में रहने वाले देवताओं उसे भला इतना भय क्यों?? हमने कितने ही बार उनकी अखंड शक्ति को धूल में मिला दिया। उनकी शक्तियां हमारी ही दी हुई है, क्योंकि यदि हमने समुद्र मंथन ना किया होता तो, ना तो विष्णु को लक्ष्मी मिलती और ना ही देवताओं को अमृत। हमेशा छल की भाषा जानने वाले देवता भला क्यों बार-बार झांककर हमारे ही लोको की शक्तियों को तलाशते हैं।

यदि संपूर्ण शक्तियों का संचालन होना ही प्राप्त है, तो फिर क्यों इस सत्तर हजार योजन में भटकते फिरते हैं। अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल सबको बराबर लंबाई चौड़ाई नाप कर जब दस दस हज़ार योजन में बांट दिए गए और स्वयं स्वर्ग देवताओं को सौंप हम दैत्य दानवों और नागों को यहां पृथ्वी की गहराइयों में छोड़ स्वयं ऊंचाइयों पर जा बैठे। फिर क्यों बार-बार बिना किसी कारण के हस्तक्षेप किया जाता है।

यदि अतल मयदानवों के पुत्र को जिन्होंने 96 प्रकार की माया रची, और जिनके वितल लोग में स्वयं हाटकेश्वर रुप में महादेव जी अपने पार्षद भूतगणों के साथ रहते हैं , और स्वयं माता भवानी के साथ विहार भी करते हैं। और इसी प्रभाव के कारण वितल में हाट नाम की सुंदर नदी भी बहती है। वितल के नीचे सुतल जिसमें महातपस्वी पवित्रकृति विलोचन के पुत्र बली रहते हैं। जिनसे देवताओं के कहने पर स्वयं श्री हरि विष्णु ने वामन रूप लेकर तीनों लोको का राज छिन देवताओं को दे दिया, फिर भी उनका मन नहीं भरा।

वही सुतल के नीचे तलातल जहां त्रिपुरा अधिपति दानव राजमय जो ऋषियों का भी परम गुरु है, उसके नीचे महाकाल जिसमें ऋषि कश्यप की पत्नी कद्रू की पत्नी से उत्पन्न अनेक सिर वाले सर्पों का क्रोधवश नामक समुदाय रहता है, जिनमें कहूक तक्षका कालिया और सुषेण जैसे प्रधान नागों की गिनती आती है, जो अत्यंत विशाल फनों वाले हैं।

उसके पश्चात रसातल में पणी नाम के दैत्य और दानव जिन्हें निवात कवच कालेय और हरिण्यपूर वाशी की भी कहा जाता है। जिसका अनंत काल से देवताओं से विरोध बना रहा और इन सबके बीच पाताल लोक जो कि पृथ्वी की अत्यंत गहराइयों में है, और इन समस्त लोको से होकर वहां तक पहुंचा आ सकता है। वहां शंड्‍ड, कुलिक, महाशंड्ड, श्वेत, धनन्जय, धृतराष्ट्र, शंखचूड़, कम्बल, अक्षतर और देवदत्त आदि बड़े क्रोधी और बड़े बड़े फनों वाले नाग रहा करते हैं।

इनमें नागराज को वासुकी प्रधान माना गया है। सहस्त्र सिरो वाले नागों के हर फन पर दमकती हुई मणियों के प्रकाश से ही उस पाताल लोक का सारा अंधकार नष्ट हो जाता है। जिसकी चकाचौंध के सामने सूर्य की रोशनी भी फीकी पड़ जाती है। इन लोको के सुख भोग के सामने स्वर्ग लोक का अर्मत्व भी फीका नजर आता है। इसलिए बार-बार देवता अमृत पा लेने के पश्चात भी ललाइन रहते हैं।

पृथ्वी की गहराइयों में छुपे उन शक्तियों के लिए नाग शक्ति अपनी अस्तित्व रक्षा के लिए जन्मेजय यज्ञ के दौरान दिए हुए वचन को निभाने के लिए और मां मनसा देवी की कृपा कहे या उन नाग कन्याओं का समर्थन जो स्वयं भगवान शिव के वीर्य से उत्पन्न हुई है। शायद इसी कारण विवश हो देवताओं के समर्थन के लिए आखिर क्या दोष था उन नाग और सर्पों का, जो उन्हें बिना किसी उचित कारण के सर्प यज्ञ में भस्म कर दिया गया। क्या सिर्फ इसलिए कि एक ऋषि वाणी को और उनके दिए हुए श्राप को सिद्ध करने के लिए तक्षक नाग ने जाकर राजा परीक्षित को मुक्ति प्रदान की, जिसमें खुद उनके विवेक का भी तो दोष था।

सब कुछ जानते हुए भी कलयुग को क्यों उन स्थानों पर रहने की अनुमति दी, जो खुद उन्हीं की प्रजा के अंश थे। देव तुल्य हो जाने का मात्र आशय यह नहीं कि उन्हें निरीह पशु पक्षी या मार्ग से भटके हुए प्राणियों के अंत का अधिकार मिल गया। मैं बिल्कुल समर्थन नहीं करता उन मानव और देवताओं का जिन्होंने हमेशा से गलत निर्णय लेकर कमजोर वर्गों को प्रताड़ित किया और फिर उन्हीं को उचित स्थान प्रदान कर दिया, कहते हुए सम्राट कुशिक बहुत नाराज नजर आ रहे थे।

जब से सम्राट कुशिक को इस बात का अंदेशा हुआ कि नाग कन्या के रूप में लक्षणा का जन्म हो चुका है। वह बहुत ही विचलित थे , क्योंकि वे भली भांति जानते थे। त्रिकालदर्शी होने के कारण में नाग पत्री का रहस्य जिसे आजतक कोई नहीं जान पाया, उसे सिर्फ लक्षणा ही जान सकती है। लेकिन वे इस बात से बिल्कुल सहमत नहीं है और बहुत क्रोधित भी है कि जिस नाग पत्री की स्थापना स्वयं नाग कन्याओं के द्वारा इस पाताल लोक में की गई, उस पर भला पाताल लोक के निवासियों का अधिकार ना होकर किसी देवता या मनुष्यों का अधिकार कैसे हो सकता है।

उन्होंने इस विषय में नाग माताओं से भी प्रार्थना की थी अनंत काल पूर्व......तब उन्हें सिर्फ यहीं आश्वासन मिला था। सक्षमता, सामर्थ्य दिलाती है, और वही लक्ष्य प्राप्त करने में सफल हो सकता है। जो सामर्थ्य वान हो तब फिर विचार कैसा??

अपना सामर्थ्य सिद्ध करो और नागपत्री को हासिल कर लो। हमने पाताल की गहराइयों में उसे इसलिए रखा है, ताकि किसी भी प्रकार का कोई पक्षपात ना हो। कोई यह ना कह सके की शक्ति को स्वर्ग लोक के प्रस्थापित करके रखा है देवताओं की सरलता के लिए...... वरना पाताल लोक से कहीं ज्यादा आकाशगंगा में स्थित ऐसे विलक्षण शक्तियों वाले लोक भी हैं, जिनके विषयों में देवताओ और दैत्यों की लिए सोच पाना संभव नहीं है। नागपत्री की रचना संपूर्ण सृष्टि के हित में की गई है। उनका स्पर्श मात्र ही किसी भी प्राणी में चाहे वह कोई भी क्यों ना हो, पाताल लोक से लेकर अनंत लोक तक....जिसके मध्य संपूर्ण सृष्टि समाहित हैं।

किसी भी लोक और योनि का प्राणी यदि उसका स्पर्श भी पा ले तो वह इस सृष्टि की संपूर्ण शक्तियों का आधिपत्य हासिल कर सकता है। उसे वे शक्तियां जो जानकारी में है वे भी जिनके विषय में आज तक किसी ने भी नहीं सुना, सभी प्राप्त हो जाएगी, जिनकी मारक क्षमता त्रिदेवो के ज्ञात अस्त्र-शस्त्र से भी कहीं ज्यादा है, क्योंकि वे शक्तियां अनेकों ब्रह्मांड के नष्ट होने तक.....जिनका सामना कोई नहीं कर सकता, फिर उसे भला कोई इतना सरलता से कैसे प्राप्त कर लेगा।

जाओ तपस्या करो, सरल गुण लाओ और त्रिदेवो का संरक्षण प्राप्त करो और हासिल कर लो उस शक्ति का सानिध्य। मुझे खुशी होगी, यदि तुम उसे प्राप्त कर लेते हो, क्योंकि कहीं ना कहीं मैं भी चाहती हूं कि तुम भी विजय प्राप्त करो और तुम्हें भी प्राप्त हो बराबरी का अधिकार।

क्रमशः....

   20
2 Comments

Mohammed urooj khan

25-Oct-2023 12:42 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

Reply

Gunjan Kamal

24-Oct-2023 01:31 PM

शानदार भाग

Reply